आज पूरी दुनिया पर्यावरण के मुद्दे पर बात करना चाहती है, दुनिया इस मुद्दे पर खुली चर्चा कर इसका समाधान करना चाहती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग बढ़ता रहा तो शीघ्र ही ग्लेशियर में जमे बर्फ पिघलने लगेंगे और धीरे-धीरे पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी और सम्भवतः एक दिन ऐसा भी आएगा जब दुनिया से सभी जीवों का अस्तित्व समाप्त हो जाए।
इस पूरी समस्या का जड़ है जंगलों को उनके जड़ से ख़त्म कर देना। वर्षों से पूरी दुनिया के लोग जंगलों को काट-काट कर अपनी जरूरतों को पूरा करते रहे हैं लेकिन कभी किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि यदि जंगल ही नहीं रहेंगे तो हमे किन समस्याओं से झूझना पड़ सकता है। लेकिन आज हम जिस व्यक्ति के बारे में बात करने जा रहे हैं, उन्होंने आज से 40 साल पहले ही इस तथ्य को समझ लिया था कि बिना जंगलों के हमारा कोई अस्तित्व नहीं है।
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जादव मोलाई पायेंग (Jadav Molai Payeng):
जादव मोलाई असम राज्य के जोरहाट के रहने वाले हैं। जादव जब 16 वर्ष के थे तब उनके क्षेत्र में बाढ़ आई थी। बाढ़ आने से उनके आस-पास के सभी जंगल समाप्त हो गए। उसके उपरांत उन्होंने एक दिन ध्यान दिया कि सैकड़ों-हजारों की संख्या में सांप जंगल और छाया ना होने के कारण गर्मी के कारण नदी के रेत में झुलस कर मर गए हैं। इस घटना ने उनके दिल को बहुत दुःख पहुँचाया और उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि यदि जंगल नहीं बचेंगे तो अन्य जीव-जंतुओं के साथ-साथ हम मनुष्यों का जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। अतः उन्होंने जंगल लगाने की जिद ठान ली।
वर्ष 1979 में गोलाघाट जिले के वन विभाग द्वारा 200 एकड़ भूमि पर जंगल लगाने के लिए एक योजना शुरू की गई। यह योजना लगभग 5 वर्षों तक चली थी। इस योजना में जादव मोलाई ने भी कार्य किया था. योजना के समाप्ति के उपरांत सभी मजदूर दुसरे कामों में लग गये परन्तु मोलाई वृक्षारोपण के अपने कार्य को आगे बढ़ाते रहे है और पूरी तल्लीनता से इसमें लगे रहे है.
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30 वर्षों तक पेड़ लगाया:
जादव मोलाई ने पेड़ लगाना यूँ ही नही छोड़ दिया बल्कि वह 30 वर्षों तक लगातार वृक्षारोपण करते रहे है. कोई भी नया वृक्ष लगाने के उपरांत वह उसके बगल में ही बांस की एक लकड़ी पर एक पानी भरा मिट्टी का मटका बाँध देते थे जिसमे से बूँद-बूँद पानी हफ़्तों तक उस पौधे पर पड़ता रहता था और नया लगाया हुआ पेड़ बिना मुरझाये जीवित रहता था. इस तकनीकी के प्रयोग से उनके समय में भी बचत होती थी और वह ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा पाते थे.
1360 एकड़ भूमि पर बसा दिया जंगल:
अपने 30 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने 1360 एकड़ भूमि पर जंगल बसा दिया जो कि किसी एक व्यक्ति के लिए अत्यंत ही असंभव और नामुमकिन कार्य है. लेकिन जादव मोलाई ने अपने सतत प्रयास के बलबूते यह कारनामा कर दिखाया. मोलाई द्वारा लगाए गये इस जंगल में सैकड़ों की संख्या में हिरन, राइनो, बाघ, बन्दर सहित अनेक प्रकार के पक्षियाँ भी निवास करते है. यहाँ सैकड़ों की संख्या में हाथी भी चलते-फिरते पहुँच जाते हैं.
“The Forest Man”:
धीरे-धीरे जादव मोलाई के इस कारनामे के बारे में असम होते हुए देश-दुनिया के लोगों को पता चला. लोगों को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि एक बहुत ही कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति इतना बड़ा कारनामा कैसे कर सकता है. उनके इस उपलब्धि को सराहते हुए दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के वाईस-चांसलर सुधीर कुमार सोपोरी ने इस जंगल के नाम जादव मोलाई पायेंग के नाम पर मोलाई फारेस्ट रख दिया तथा उन्हें “The Forest Man” कहकर संबोधित किया. अब जादव द्वारा लगाये गये इस जंगल को मोलाई जंगल के नाम से जाना जाता है.
पदम् श्री से सम्मानित:
मोलाई द्वारा स्थापित किये कीर्तिमान के बारे में जब भारत सरकार को जानकारी मिली तो भारत सरकार ने उनके कार्य की सराहना करते हुए उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम् श्री से सम्मानित किया. अत्यंत आम जिंदगी बिताते हुए भी पदम् श्री से नवाजे जाने से इस बात का अंदाजा लगता है कि उन्होंने अपने सादे जीवन में कितने उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं.
जादव मोलाई के जीवन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म:
इसके अलावा उनके जीवन-गाथा को चरितार्थ करती हुई कई डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया गया। ‘Foresting life’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भारतीय फिल्म निर्देशक आरती श्रीवास्तव द्वारा वर्ष 2013 में बनाई गई थी जिसमे जादव मोलाई पायेंग के जीवन और मोलाई फॉरेस्ट को दिखाया गया था। वर्ष 2013 में ही कैनेडियन फिल्म डायरेक्टर विलियम डगलस मैकमास्टर द्वारा ‘Forest Man’ नाम से एक दूसरी डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई गई जिसमे जादव मोलाई पायेंग के जीवन को बखूबी दिखाया गया। ‘Forest Man’ डॉक्यूमेंट्री दुनिया भर में लोगों द्वारा काफी पसंद की गई और इसे कई फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया।
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जादव का निवास स्थान:
जादव अपने द्वारा बसाए गये जंगलों के बीच ही लकड़ी से बने एक घर में रहते हैं. वह अपने घर में अपनी पत्नी और अपने तीन बच्चों के साथ रहते हैं. मोलाई पशुपालन का कार्य करते हैं और पशुओं का दूध बेचकर अपना गुजारा करते हैं. जादव अभी यहीं शांत बैठने वाले नही हैं. वह उसी प्रकार के और भी स्थानों पर जंगलों के विकास के बारे में योजना बना रहे हैं. हालाँकि वे अभी 60 वर्ष के हैं लेकिन उनके जोश और जज्बे में कोई कमी नहीं है।